गुरुवार, 16 अक्तूबर 2008

दो लघुकथाएं - चित्रा मुदगल

दूध

दूध घर के मर्द पीते हैं।
क्योंकि वे मर्द होते हैं।
उसका काम है- दूध के गुनगुने गिलास को सावधानीपूर्वक उन तक पहुँचाना। पहुँचाते हुए वह हर रोज़ दूध के सोंधे गिलास को सूंघती है। पके दूध की गन्ध उसे बौरा देती है।
एक रोज़ माँ और दादी घर पर नहीं होतीं तो वह चट-चट कोठरी खोलकर दु्धहड़ी से अपने लिए दूध का गिलास भरती है और घूँट भरने को जैसे ही गिलास होठों के पास ले जाती है, घर के उघड़े किवाड़ भड़ाक से खुल उठते हैं। उसके होठों तक पहुँचा गिलास हाथ से छूट जाता है और दुधहड़ी पर जा गिरता है। मिट्टी की दुधहड़ी के दो टुकड़े हो जाते हैं। कोठरी की गोबर लिपी कच्ची फर्श पर गुलाबी दूध चारों ओर फैल जाता है। निकट आयी भौंच्चक माँ को देख कर वह थर-थर काँपती पश्चाताप व्यक्त करती माफ़ी माँगती-सी कहती है-
“मैं… मैं…”
“दूध पी रही थी कमीनी ?”
“हाँअ…”
“मांग नहीं सकती थी?”
“मांगा था, तुमने कभी दिया नहीं…”
“नहीं दिया तो कौन तुझे लठैत बनना है जो लाठी को तेल पिलाऊँ ?”
“एक बात पूछूँ माँ?” आँसू भीगी उसकी आवाज़ अचानक ढ़ीठ हो आयी।
“पूछ !”
“मैं जन्मी तो दूध उतरा था तुम्हारी छातियों में ?”
“हाँ… खूब। पर…पर तू कहना क्या चाहती है?’
“तो मेरे हिस्से का छातियों का दूध भी क्या तुमने घर के मर्दों को पिला दिया था?”


मर्द

“आधी रात में उठकर कहाँ गयी थी?” शराब में धुत्त पति बगल में आकर लेटी पत्नी पर गुर्राया।
आँखों को कोहनी से ढ़ाँकते हुए पत्नी ने जवाब दिया, “पेशाब करने।”
“एतना देर कइसे लगा?”
“पानी पी-पी कर पेट भरेंगे तो पानी निकलने में टैम नहीं लगेगा?”
“हरामिन, झूठ बोलती है? सीधे-सीधे भकुर दे किसके पास गयी थी?”
पत्नी ने सफाई दी- “कऊन के पास जाएँगे मौज मस्ती करने ! माटी-गारा ढ़ोती देह में पिरान हैं?”
“कुतिया…”
“गरियाब जिन, जब एतना मालुम है किसी के पास जाते हैं तो खुद ही जाके काहे नहीं ढूँढ़ लेते?”
“बेसरम बेहया… जबान लड़ाती है। आखिरी बार पूछ रहे हैं – बता, किसके पास गयी थी?”
पत्नी तनतनाती उठ बैठी- “तो लो सुन लो, गये थे किसी के पास। जाते रहते हैं। दारू चढ़ाके तो तू किसी काबिल रहता नहीं…”
“चुप्प हरामिन, मुँह झौंस दूँगा जो मुँह से आँय बाँय बकी। दारू पीके मरद मरद नहीं रहता?”
“नहीं रहता।”
“तो ले देख, दारू पीके मरद मरद रहता है या नहीं !” मरद ने बगल में लुढ़का पड़ा लोटा उठाया और औरत की खोपड़ी पर दे मारा!
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जन्म : 10 दिसम्बर 1944 को चेन्नई में जन्मी और मुंबई में शिक्षित चित्रा मुदगल आधुनिक कथा-साहित्य की बहुचर्चित और सम्मानित रचनाकार हैं। अब तक ग्यारह कहानी संग्रह, तीन उपन्यास, तीन बाल उपन्यास, चार बाल कथा संग्रह, पाँच संपादित पुस्तकें, गुजराती में दो अनूदित पुस्तकें, दो वैचारिक संकलन प्रकाशित हो चुके हैं। इनके बहुचर्चित उपन्यास ‘आवां’ पर सहस्रादी स्ज प्रथम अन्तरराष्ट्रीय ‘इन्दु शर्मा कथा सम्मान’, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का ‘साहित्य भूषण सम्मान’, हिन्दी अकादमी दिल्ली का ‘साहित्यकार सम्मान’, के के बिड़ला फाउण्डेशन के 2003 के ‘व्यास सम्मान’ से समादृत।

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