बुधवार, 14 अक्तूबर 2009

गतिविधियाँ

कुंवर नारायण को ज्ञानपीठ पुरस्कार

हिन्दी के वरिष्ठ व लब्ध-प्रतिष्ठित कवि कुंवर नारायण को भारतीय भाषाओं के साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिए 41वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने संसद भवन के बालयोगी सभागार में एक गरिमामय समारोह में कुंवर नारायण को वर्ष 2005 के ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया। सम्मान में 7 लाख रुपये की राशि, वनदेवी की प्रतिमा, प्रशस्तिपत्र, प्रतीक चिन्ह, शाल और श्रीफल शामिल है। भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक रवींद्र कालिया के अनुसार इस बार से पुरस्कार राशि पांच लाख रुपये से बढ़ाकर 7 लाख कर दी गई है।
19 सितम्बर 1927 को जन्मे कुंवर नारायण को पद्म भूषण, साहित्य अकादमी पुरस्कार, हिन्दी अकादमी का श्लाका सम्मान, कबीर सम्मान तथा मानद डीलिट की उपाधि भी मिल चुकी हैं।
कुंवर नारायण का पहला कविता संग्रह चक्रव्यूह 1956 में छपा था। अज्ञेय द्वारा संपादित तीसरे “तार सप्तक” के महत्वपूर्ण इस कवि के छह कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। आत्मजयी और वाजश्रवा के बहाने उनके चर्चित खण्डकाव्य हैं। उनकी आलोचना की तीन पुस्तकें भी प्रकाशित हैं और उन्होंने विदेशी साहित्य का भी काफी अनुवाद किया है।
कुंवर जी को बधाई एवं शुभकामनाएं।

संसद में ‘राष्ट्रभाषा गौरव सम्मान’ अर्पण

24 सितम्बर 2009 को संसद के केंद्रीय कक्ष में राष्ट्रभाषा उत्सव 2009 मनाया गया। इस उपलक्ष्य में हिन्दी साहित्य एवं भाषा के क्षेत्र में अनवरत कार्य करने एवं उसे नए आयाम देने के लिए ग़ज़लकार लक्ष्मीशंकर वाजपेयी और कवयित्री-कथाकार अलका सिन्हा सहित तीन अन्य साहित्यकारों को वर्ष 2009 के ‘राष्ट्रभाषा गौरव सम्मान’ से सम्मानित किया गया। राष्ट्रभाषा गौरव सम्मान पाने वालों में डॉ0अर्चना त्रिपाठी, डॉ0 रेखा व्यास और डॉ0 उषा देव भी शामिल हैं। इन सभी को प्रशस्ति पत्र, स्मृति चिन्ह और शॉल भेंट किए गए।
इन साहित्यकारों को सम्मान प्रदान करते हुए केंद्रीय श्रम राज्य मंत्री हरीश रावत ने आह्वान किया कि राजभाषा को सरकारी दायरों से बाहर लाकर जन-आंदोलन का रूप देना होगा। इस जन-आंदोलन में साहित्यकारों, लेखकों, विचारकों की महत्वपूर्ण भूमिका है क्योंकि जब वे कुछ ठान लेते हैं तो बाधाएं स्वत: दूर हो जाती हैं।

समारोह के अध्यक्ष भारतीय ज्ञानपीठ के पूर्व निदेशक एवं वरिष्ठ साहित्यकार दिनेश मिश्र ने कहा कि साहित्य से जुड़े हुए लोगों को मीडिया के साथ मिलकर न केवल हिन्दी बल्कि सभी भारतीय भाषाओं को सक्षम बनाने का अभियान छेड़ना चाहिए। हमें दक्षिण भारत की भी एक भाषा सीखने का संकल्प करना चाहिए।

संसदीय हिन्दी परिषद् की अध्यक्ष एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ0 सरोजिनी महिषी ने अपने संबोधन में उपस्थित विद्वानों और साहित्यकारों का स्वागे करते हुए संसद में राजभाषा से जुड़े गौरवशाली प्रसंगों को याद किया। ‘राष्ट्रभाषा उत्सव’ राष्ट्रगान के साथ संपन्न हुआ।

नेशनल बुक ट्रस्ट- हिंदी पखवाड़ा कार्यक्रम

नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा 14 से 30 सितंबर तक हिंदी पखवाड़ा मनाया गया। इस अवसर पर 23 सितंबर को ट्रस्ट कार्यालय में 'अपने प्रिय लेखक से मिलिए' कार्यक्रम के अलावा निबंध प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया। प्रख्यात साहित्यकार एवं पत्रकार, पद्मश्री श्री कन्हैयालाल नंदन को इस कार्यक्रम हेतु निमंत्रित किया गया था। बड़ी संख्या में उपस्थित ट्रस्ट कर्मियों के साथ श्री नंदन ने लगभग आधी सदी की अपनी साहित्यिक एवं पत्रकारिता यात्रा के अनुभव बांटे। 'धर्मयुग', 'पराग', 'सारिका' तथा 'दिनमान' आदि पत्रिकाओं में संपादक के रूप में अपनी गहरी छाप छोड़ने वाले श्री नंदन ने जहां पत्रकार रूप के अपने अनुभव और विचार साझा किए वहीं साहित्यकार के रूप में वे जिन-जिन पड़ावों से गुजरे उसे भी विस्तार से बताया। उन्होंने नेशनल बुक ट्रस्ट के कार्यकलापों की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उन्होंने कहा, ''मैं एन.बी.टी. को राष्ट्र की संपत्ति मानता हूं।'' श्री कन्हैयालाल नंदन ने इस अवसर पर ट्रस्ट की पिछले दिनों प्रकाशित दो पुस्तकों - 'दीवार एवं अन्य कहानियां' तथा 'संदूक में दुल्हन तथा अन्य कहानियां' का लोकार्पण् भी किया।
इस अवसर पर निबंध प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया था। प्रतियोगिता का विषय था: 'राष्ट्रीय एकता के लिए हिंदी सूत्रभाषा है।' इस प्रतियोगिता में बड़ी संख्या में ट्रस्ट के अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने भाग लिया। प्रतियोगिता के निर्णायक के रूप में प्रख्यात साहित्यकार सर्वश्री सुभाष नीरव तथा डॉ. राजेंद्र गौतम निमंत्रित किए गए थे। इस अवसर पर अपने संक्षिप्त वक्तव्य में डॉ. राजेंद्र गौतम ने कहा कि ''हमें ऐसी हिंदी का प्रयोग करना चाहिए जो मिश्रित संस्कृति को विकसित कर सके।'' उन्होंने हिंदी के संपर्क भाषा के रूप में महत्ता को रेखांकित करते हुए कहा कि ''संपर्क भाषा के रूप में हिंदी का जो महत्व है वह राष्ट्रभाषा या राजभाषा के रूप में नहीं।'' श्री सुभाष नीरव ने कहा कि ''हिंदी दिवस या सप्ताह या पखवाड़ा मनाने का उद्देश्य यही है कि इससे प्रेरित होकर हिंदी में अधिक से अधिक कामकाज किया जाए।'' उन्होंने ट्रस्ट की हिंदी भाषा में व्यापक कार्यकलापों की प्रशंसा की। कार्यक्रम का संचालन ट्रस्ट में मुख्य संपादक एवं संयुक्त निदेशक डॉ. बलदेव सिंह 'बद्दन' ने किया। इस अवसर पर ट्रस्ट के संयुक्त निदेशक (प्रशासन एवं वित्ता ) श्री अमर मुदि का सान्निध्य रहा। कार्यक्रम संचालन में ट्रस्ट के संपादकीय विभाग में कार्यरत श्री दीपक कुमार गुप्ता ने सहयोग किया। इससे पहले दो सत्रों में संपन्न कार्यक्रमों में अतिथि लेखक व निर्णायकों का स्वागत पुस्तकों के गुच्छ से किया गया।
निबंध प्रतियोगिता के विजेताओं को श्री कन्हैयालाल नंदन के हाथों नकद पुरस्कार प्रदान किए गए। पुरस्कार तीन कोटियों में दिए गए। ये कोटियां थीं : अधिकारी वर्ग, गैर हिंदी वर्ग तथा कर्मचारी वर्ग। प्रत्येक कोटियों में प्रथम, द्वितीय व तृतीय (प्रत्येक एक-एक) पुरस्कारों के अलावा दो लोगों को सांत्वना पुरस्कार दिए गए।
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